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नहीं-नहीं, ये अइसे नो हे, फेर कलेक्टर छात्र ल सुनाइन संस्कृत के ये श्लोक

34 साल बाद, कलेक्टर ल रहिस ये श्लोक याद, छात्र के नइ बोल पाय म सुना के बताइन

जांजगीर-चाम्पा, जिला के शिक्षा व्यवस्था ल बेहतर बनाए बर अलग-अलग विकासखण्ड अऊ अलग-अलग स्कूल मन म सरलग दउरा करत कलेक्टर श्री तारन प्रकाश सिन्हा न सिरिफ विद्यालय मन म शिक्षक मन के समय म उपस्थिति ल ठउका कराए के उदीम करत हें, ओ मन अनुपस्थिति या बिलंब ले अवइया शिक्षक मन के विरुद्ध कार्यवाही के निर्देश घलोक देवत हें। एखर संगेच कलेक्टर श्री सिन्हा शिक्षक मन ल उंखर कर्तव्य अऊ पढ़ईया लईका मन ल शिक्षा के महत्व घलोक बतावत हें। कलेक्टर श्री सिन्हा कई स्कूल मन म शिक्षक के भूमिका म आके बहुत आत्मीयता के संग जिला के पढ़ईया लईका मन ल पढ़े-लिखे बर प्रोत्साहित करत हें। उंखर ये प्रेरणा के असर कलेक्टर के स्कूल म आतेच दिखे घलोक लगे हे।

अइसनहेच बलौदा ब्लाक के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय जावलपुर म जब कलेक्टर उहाँ शिक्षक मन के उपस्थिति के जांच के बाद क्लास म पहुंचिन त कई पढ़ईया लईका मन ल कलेक्टर के सवाल के अगोरा करत रहिन। ये बीच कलेक्टर ह घलोक कुछ पढ़ईया लईका मन ल कठिन लगइया विसय संस्कृत के कोनो श्लोक सुनाए ल कहिन। कुछ सेकण्ड तक विद्यार्थी एती-वोती देखे लगिन, कलेक्टर ह पंदोली देवत कहिन डेराव झन सुनावव। मैं तुंमन ल कुछ इनाम घलोक देहूं। अतीक म अगूच म बइठे एक छात्र देवेंद्र खड़ा होइस अऊ श्लोक पढ़के सुनाए लगिस। छात्र जे श्‍लोक सुनावत रहिस तेमा कुछ आखर छूट गे, त कलेक्टर ह तुरंते ओ ल रोकत कहिन नहीं-नहीं, ये श्लोक अइसन हे। फेर कलेक्टर ह क्लास म सबो पढ़ईया लईका मन के बीच संस्कृत के ये श्लोक‘ शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे। साधवो न हि सर्वत्रं चन्दनं न वने वने‘ सुनाइन अऊ हिन्दी म भावार्थ घलोक बताइन ( हिन्दी में-सभी पहाड़ों पर मणि नहीं प्राप्त होती, सभी हाथियों में गजामुक्ता नामक मोती नहीं पाये जाते। सज्जन लोग सभी जगह नहीं पाये जाते और चन्दन का वृक्ष सभी वनों में नही पाया जाता। अर्थात ये सब मणि, मोती, साधु, चन्दन का वृक्ष बड़े ही दुर्लभ होते हैं )

कलेक्टर श्री सिन्हा ह पढ़ईया लईका मन ल बताइन कि 34 साल पहिली जब उमन कक्षा नवमीं म पढ़ाई करत रहिन, तब संस्कृत विसय के बहुत अकन श्लोक मन ल बने असन याद करत रहिन। ते पाए के ओ मन ल आज घलोक ये श्लोक एकदम याद हे। कलेक्टर ह ‘मैं स्कूल जात हंव‘ के संस्कृत म अनुवाद पूछिन त पीछू कोति बइठे छात्रा दीपाक्षी ह एकर सही जवाब देवत श्लोक सुनाए के इच्छा जताईस। कलेक्टर के सहमति के बाद दीपाक्षी ह सुनाइस ‘अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम्। अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतः सुखम्‘ (हिन्दी में-जो आलस करते हैं उन्हें विद्या नहीं मिलती, जिनके पास विद्या नहीं होती, वो धन नहीं कमा सकता, जो निर्धन हैं उनके मित्र नहीं होते और मित्र के बिना सुख की प्राप्ति नहीं होती)।

कलेक्टर ह दीपाक्षी अऊ देवेन्द्र बर सबो पढ़ईया लईका मन ले ताली बजवाए के संग ओ मन ल बधाई के संग पुरस्कार घलोक दीन अऊ सबो ल प्रोत्साहित करत कहिन कि तूं मन घलोक बने सहिन पढ़ाई करव। तूं मन के पढ़ाई ही तूं मन ल एक दिन सफलता के शिखर म पहुंचाही। तूं मन ल बने नौकरी मिलही। उमन शिक्षक मन ले घलोक कहिन कि पढ़ईया लईका मन ल बने सहिन ले पढ़ावव। समय म स्कूल आवव। शिक्षा अऊ ज्ञान देहे म कोनो प्रकार के कमी झन करव।

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