तुतारी – बधई तो बधई होथे।

तुतारी – बधई तो बधई होथे।

हम ल तुँहर बोली भाखा, रहन सहन, रीत रिवाज अउ संस्कृति ले का लेना देना हे साहेब ! बधई देके तुँहर नजर म चढ़के टिकट के जुगाड़ भर तो करना हे। अउ अइसे भी बधई गाड़ा गाड़ा या ट्रेक्टर के ट्राली म भर भरके दे, चाहे लदबद-ले गाढ़ा गाढ़ा या पातर पनियर दे बधई तो बधई होथे।

टिकट के जुगाड़ नइ होही त बागी होके आगी ढीलना हे, नइते पाला बदलके पर के रागी हो जाना हे।

छत्तीसगढ़िया मन ल का चाही ?

बस कार्यकारिणी, सचिव नइते बूथ अध्यक्ष। इन तो अतेक सीधवा अउ सबले बढ़िया हे कि इन्कर पीठ ल थपथपा देबे ओतके म खुशी के लालीपॉप चुचरत तीरिया जथे।

हमला तो राज चाही।

लउछरहा..