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इतवारी: मोर मन करिया रे !

बीस बछर बाद मोर चड्डु-पड्डु संगवारी अचानक जिनगी के मोड़ म मिलगे। बालपन के संगी दिन के उजास म तो संग रहितेच फेर जिनगी के करियाहा रात म तको राख भीतर धधकत अंगरा कस अभास अउ अहसास बनके दिल म रथे। वोह उही बालपन म एक ठो पथरा उठाइस अऊ अंतस के अथाह अऊ ठहिरे पानी म ‘टुभुक ले’ मार दिस – कतेक करिया गे हस रे। तोर जम्मोे रंग-रूप बदल गेहे।
‘दुनिया ल प्रेम के पाठ पढ़इया किसना तको तो करिया रिहिसे। आँखी के सेत-स्याम पुतरी राधेस्याम के प्रेम के प्रतीक हरे।’
‘वाह रे कन्हैया !’
रंग ल तको अपन ढंग म देखे के नजरिया होथे। सबो रंग के अपन सकारात्मक अउ नकारात्मक प्रभाव होथे। रंग के उत्पत्ति के सब ले बडे़ प्राकृतिक स्त्रोज सुरूज हरे। सुरूज हे तभे सुरूज के लालिमा, खेत के हरियाली, अगास के नीलापन, घपटे बादर के करियापन, बरसा के बाद इंद्रधनुष के छटा, बरफ के सफेदी हे जउन मन मनखे के अंतस ल हलाथे-हलोरथे। कोनो रंग शांति देथे, कोनो उछाह भरथे त कोनो रंग मया म मतवार करके मन ल नाचत-गावत मोर बना देथे। सत कहिबे त रंग के बिना जिनगी सुन्ना हे।
सुरूज के किरण म सात रंग होथे जेला वेद में ‘सप्तरश्मि’ कहे गे हे। किरण के इही सात रंग, रंग मन के जनक हरे। सूर्य के किरण बरसात म जब अलग-अलग होके बगरथे त ‘इंद्रधनुष’ बनथे। एला हमन ‘इंद्र के घोड़ा’ तको कहिथन। जेला विज्ञान म वर्णक्रम के हिसाब ले नानुक करके ‘बै जा नी ह पी ना ला’ अउ अंग्रेजी म VIBGYOR कहिथे।
किरण के सातो रंग गहिरी, मद्धम अऊ हल्का प्रभाव के सेति कुल 21 ठन रंग बनाथे । इही मन ले अलग-अलग रंग ल मिलाके अउ कतकोन रंग बनाए जा सकथे। आनी-बानी के रंग ल मिलाके 10 लाख तक रंग बनाये जा सकथे फेर हमन 378 ठिन रंग भर ल आकब करके (बारीकी से) देख सकथन। रंग मन ले ही दुनिया रंगीन हावय। रंग मन के इही प्रभाव के सेति भारतीय चिकित्सा पध्दति म रंग चिकित्सा हे। लाल रंग प्रेम के प्रतीक होथे। एकर ले बुखार, दमा, खाँसी, पेट संबंधी रोग दूर होथे। हरियर रंग सुख देवइया हरे एकर ले स्नायु अउ नाड़ी संस्थान के रोग अउ साँस के रोग दूर होथे। पीला रंग जीवन म खुशहाली देने वाला होथे। हाथ के पींवरा होए ले बेटी के घर अउ बेटा भाव बदल जथे। एह बी.पी. दिल के रोग, पेट पीरा अउ खून के कमी बर लाभदायक हे। नीला रंग ठण्डा होथे एह अपच, मधुमेह, धात (श्वेतप्रदर) अउ गर्भाशय के रोग ल बने करथे। बैगनी रंग ठण्डा अउ खून बढ़इया होथे तेकर सेति टी.बी., नपुंसकता, मिर्गी, गठिया, पीलिया बर एला उपयोग म लाये जाथे। नारंगी रंग बुद्धि ल बढ़ाथे, बात, अम्लपित्त, खूनी दस्त, नाक -कान के रोग म काम आथे। अइसनेहे असमानी रंग ठण्डा होथे अउ जिनगी म आशा के संचार करथे। एकर उपयोग हिरदय, खाँसी, बुखार, बवासीर, सर्दी जुकाम, दिल के रोग, खून के रोग अउ यौन संबंधी रोग बर होथे।
हरियर बोतल म पानी भरके सात ले आठ घंटा घाम म रखे ले सूरज के हरियर रंग के प्रभाव पानी म परथे। आयुर्वेद म एला हरा पानी कहिथेे। एकर संझा -बिहिनिया एकक कप सेवन करे ले पचीसो बछर जुन्ना कब्ज ले छुटकारा मिलथे।
हर एक रंग के अलग-अलग गुण अउ प्रभाव होथे। सूरूज किरण के रंग मन ले हमर तन मन ल ऊर्जा मिलय एकर सेति सूरूज ल अध्र्य देहे के विधान हे।
रंग के उपयोग हम कईयों ढंग ले करथन। दुनिया के रंग जउन हे तउन हे फेर आँखी म जउन रंग के तस्मा चढ़़ाबे उही रंग के दिखथे। चस्मा उतारव फेर देखव…….।
सावन के अंधरा ल सबो हरियर -हरियर लगथे । लहू के रंग लाल होथे फेर करियाए ले मनखे -मनखे के बीच दरार पर जथे। चेहरा के रंग लाल-पींयर होय ले मनखे के मन काबू म नइ राहय जइसे लाल रंग ल देखके साँड़ बेकाबू हो जथे।
गिरगिट कस रंग बदलइया मनखे अबड़ चालबाज होथे। होवत रिहिसे पहिली सफेद बाल होना बुढ़ापा के निशानी, अभी के जुग म एकरो कोई भरोसा नई रहिगे। फेसन के जमान आगे हे। बुढ़ापा ल अनभो के खजाना तको कहिथे ओकर पाय के अनभवी मनखे बर धूप म बाल सफेद नई करे हे कहिथे। मेंहदी के रंग कोन ल पसंद नई होवय। मेंहदी के चटक-चमक ल जिनगी भर बर रखे बर गोदना गोदाए के प्रथा चलिस होही। इही ल आज कल के मटमटहा मन नवा जमाना के नवा फैसन हरे कहिथे। हमरे गोदना आज टैटू बन नौसिखिया मन ल बरगलावत हे अउ हमी ल बिजरावत हे। चेहरा के रंग म निखार लाने बर एक चम्मच बेसन ल दू चम्मच दूध म घोल बना लेवय। एला चेहरा म लगाके 15-20 मिनट रखय। पीछु साफ पानी म धो लेवय। दिन म दू-तीन पइत धोए ले हफ्ता भर म चेहरा के रंग म निखार आ जथे।
जऊन ल चेहरा चमकाना हे, मटमटाना हे तऊन तीन-तेरा उदीम करय। हम तो करिया गाय ल कपिला/श्यामा गाय, तीनों तुलसी म श्याम तुलसी ल गुनकारी मानथन। हमला न गाल के गोरिया चाही न बाल के करिया। जिनगी तो बोहावत जल धार हे भई …….पानी रे पानी तेरा रंग कैसा ?
करिया रंग के तमस के प्रतीक होथे फेर शनिदेव ल भाथे। करिया घोड़ा के नाल ल बीच अंगरी म पहिरे ले शनि शांत हो जथे। दुनिया भर म अंजोर बगरइया सुरूज तको बिरबिट कारी रतिहा के कोरा म मुँह ल लुकाके करिया हो जथे। दुनिया ल जीते के माद्दा रखने वाला बादशाह अपने मन ले हार जथे त शहंशाह नई रहि जाय। तभो शहंशाह कहाथे।
गरीब मन के भाग म भाग नई होवय, संगवारी ! भाग होई जथे त कइ भाग म बॅटा जथे ।
करिया घलो ह जिनगी के एक ठो रंग हरे।
जिनगी म आसरा के हाथ कभू नई छोड़ना चाही। आखिर म अंधियारी रात के कोरा म मुँह लुकाए सुरूज नवा किरण संग नवा बिहान लेके आथे।
जय जोहार !!
धर्मेन्द्र निर्मल

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