योग सबद संस्कृत से लिए गे हवय जेकर मायने जुड़ना या एकजुट होना होथे। अंगरी-अंगरी जुड़ मुटका बनके शक्तिशाली हो जथे। एक अउ एक ग्यारह एक के अपेक्षा जादा ताकतवर होथे। वइसने योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया हरे जेमा शरीर, मन अउ आत्मा ल आपस म संघारे (योग) जाथे। योग के संयोग ल आत्मा म हृष्ट-पुष्ट अउ सजोर बनाए जा सकथे।
भारतीय दर्शन के षडदर्शन म एक के नाम योग हवय। योग सबद के उल्लेख ऋग्वेद म मिलथे। महर्षि पतंजलि ल योग दर्शन के संस्थापक माने जाथे। ओकर लिखे योगसूत्र ह योग के संपूर्ण अउ बड़का ग्रंथ हरे। योगसूत्र के रचनाकाल ईसा के पहिली शताब्दी या ओकरे तीर-तखार ल माने जाथे। पतंजलि के अनुसार योग ह बुद्धि के नियंत्रण के एक तकनीक हरे, जउन राजयोग कहाथे।
ओकर उलट हठयोग होथे। हठयोग ल भारतीय योगी स्वतमरमा ह 15वीं सताब्दी म हठयोग प्रदीपिका के रूप म जोरिस-जंगारिस। हठयोग सत्कर्म उपर केंद्रित होथे। हठयोग अनुयायी मनके मानना हे कि भौतिक काया के शुद्धता ले मन अउ परान के विशेष ऊर्जा ल खींचके लाने जाथे। पश्चिमी परदेसिया मन योग ल हठयोग के रूप म ही देखथे। इन सबो ले अलग स्वामी विवेकानंद के कहना हे कि योग बुद्धि ल आनी -बानी के बहुरूपिया रूप धरे ले रोकथे थामथे। माने सूत्र के रूप म ‘योग चित्त के वृत्ति के निरोध’ होथे।
आज के भागा-दौड़ी अउ व्यस्तता के जिनगी म लोगन मन म संतोष पाए खातिर योग करथे। योग ले न केवल मनखे के तनाव दुरिहाथे, भलकुन मन अउ मस्तिष्क ल तको शांति मिलथे। येकर ले मस्तिष्क ल शांति तो मिलथे, संगे-संगे आत्मा तको पोठ अउ ठाहिल होथे। कतकोन झिन मनखे के मोटापा अबड़ मसमोटी मारे, मटमटाए लगथे जेकर ले छुटकारा पाके, पतराके सुल्लू बने बर उन योग संग संजोग करथे।
योग के लक्ष्य स्वास्थ्य म सुधार के संगे-संग मोक्ष के अनभो- अनुमान तक लामे-बगरे हवय, जउन जीव ल जनम अउ मृत्यु के चक्कर ले रफूचक्कर कर देथे।
मोर्चा एलियाडे के कहना हे कि योग सिरिफ शारीरिक व्यायाम भर नइ होके आध्यात्मिक तकनीक हरे। इही ल डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन लिखथे कि समाधि म वितर्क, विचार, आनन्द अउ अस्मिता नाम के तत्व मन संघरे हवय।
इही विधि ले तांत्रिक अभ्यास म चक्र म धियान केन्द्रित तको करथे। तंत्र तकनीक के ये ध्यान-चक्र ल कुण्डलिनी योग माने जाथे, जेकर ले ध्यान अउ पूजा खातिर हिरदे म स्थित चक्र म देवी ल स्थापित करे जाथे।
योग सरीदिन के हमर जुन्नेटहा धरोहर हरे। येकर प्रचार -प्रसार म हमर योगगुरू मन अपन सख भर योगदान दे हवय। ये मन म अयंगर योग के संस्थापक वी.के.एस.अयंगर, स्वामी शिवानन्द अउ भारतीय प्राणायाम योगगुरू रामदेव के नाम उजागर हवय।
दूरिहा के ढोल सुहावन लागे, अपन छोड़ दूसर कोति भागे के तर्ज म हमन पश्चिमी संस्कृति ल अपनाए लगेन हवन जबकि जगतगुरू रहि चुके इही सोनचिरइया भारत के अच्छई ल आज पूरा संसार अपनाए लगे हे अउ येकरे बताए जुन्ना रद्दा म रेंगे लगे हे। जेकर परिणाम ये हवय कि 11 दिसम्बर 2014 के संयुक्त राष्ट्र महासभा ले 21 जून ल विश्व योग दिवस के रूप म मनाए बर उछाहपूर्वक राजी होगे अउ मान्यता तको दे दिस। 21 जून 2015 के पहिली अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाए गिस।
ये दिन योग के अभ्यास करे जाथे। योग दिवस के बेरा म हमर भारत दू पइत विश्व रिकार्ड तको बना डारे हवय। पहिली रिकार्ड एके जगा अबड़ झिन मनखे एके संघरा अउ दूसरइया रिकार्ड एके संघरा अबड़ अकन देष के मनखे योग करे के हवय।
जिनगी ल चलाए बर रोज खाए -पीए बर लगथे। रोज नित्यक्रिया करे बर लगथे। एके दिन के गोंह-गों ले खाए म अचपचन हो जाथे तइसे योगा ल घलो सरलग सरीदिन करे म फल देथे। एक दिन म नइ होवय।
अगर स्वस्थ रहना हे, सुग्घर अउ सुदीर्घ जिनगी जीना हे त योगा ल अपनाएच बर परही।
तो चलव, योगा हमर ले नी होगा के मानसिकता ल तियाग के, योगा हमरे ले ही होगा कहत योग करिन अउ योग के संजोग ले आनी बानी के रोग राई ले ये सुग्घर मानुस चोला ल निरोग राखिन।
जय जोहार !
धर्मेन्द्र निर्मल